Sunday, April 26, 2009

हस्ती अपनी हबाब की सी है
यह नुमाइश सराब की सी है

नाजुकी उसके लब की क्या कहिये
पंखडी इक गुलाब की सी है

मैं जो बोला कहा की यह आवाज़
उसी खानाखराब की सी है

बार बार उसके दर प जाता हूँ
हालत अब इन्ज्तिराब की सी है

'मीर' उन नीमबाज़ आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है |

1 comment:

  1. मीर की शाइरी का तो जवाब नहीं

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